Source: Feminist Approach To Technology Blog

Feminist Approach To Technology Blog My First International Trip to Africa Representing FAT - Vineeta Kumari, Communication Champion

जब भी मुझे और मेरे साथियों को FAT में वालियंटर और इंटर्नशिप करने का मौका मिला है, तो मैंने उसे बहुत दिलचस्पी के साथ किया। इस संस्था में काम करने और सिखने वाले हर व्यक्ति को मौका मिला हैं चाहे वो ट्रेनिंग के लिए कही जाना हो या खुद के आत्मविश्वास को बढ़ाना हो। मुझे भी बहुत मौके मिले मगर मैं हमेशा भारत के अंदर ही सीमित थी।2019 में Pravah-ACTIVATE! Youth Exchange Programme, यूगांडा, अफ्रीका में जाने का जब मौका FAT के पास आया तो उन्होंने मेरा नाम सुझाव के तौर पर दिया। यह पहली बार था की मैं भारत से बाहर अनजान देश में जा रही थी। मेरा चुनाव हो जाने के बाद मैनें घर वालो से बात की ओर समझाया की वो मुझे जाने दे। उन्हें फ़िक्र थी वंहा के लोगो के रहन -सहन, खान-पान और इतनी दूरी को लेकर।इस युथ एक्सचेंज प्रोग्राम में भारत के कुल 5 साथी थे। हम सब ने साथ मिलकर वीज़ा का आवेदन दिया। यह बहुत रोमांचक प्रक्रिया थी और मुझे इस प्रक्रिया के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला। यह दिसंबर का वक्त था जब छुट्टियां होती हैं। सारी छुट्टिया और नया साल होने के अगले दिन बाद हमने सारे दस्तावेजों को जमा किया और इंतजार में थे की वीसा कब मिलेगा। हमने येल्लो फीवर वैक्सीन भी लगवाया जो की हर नागरिक को लगाना ही पड़ता है यूगांडा में प्रवेश के लिए।जिस रात हमें यूगांडा के लिए निकलना था उस दिन भी वीज़ा की कोई खबर नहीं मिली तो हम सब दोबारा वीसा ऑफिस गए लेकिन, हमें कोई अपडेट नहीं मिला और हम लोग सभी निराश हो कर घर वापस चले गए।घर वालो को भी बोल दिया अब हम नहीं जा पाएंगे और पैकिंग भी पूरी नहीं हुई। घर पहुंचने के कुछ देर बाद हमें आरती (जो प्रवाह से कोआर्डिनेटर थी) उनका कॉल आया की अपना पासपोर्ट-वीसा लेने आ जाओ और हम जहाँ भी थे वंहा से भागे और वीसा लेने गए। आने-जाने में बहुत समय लगा और पैकिंग का समय नहीं मिला। तो किसी तरह एयरपोट पहुंचे लेकिन यह भाग दौड़ मेरा यही खत्म नहीं हुई।जब इमिग्रेशन का समय आया तो मेरा येल्लो फीवर वैक्टीनेशन कार्ड मेरे दस्तावेजों वाले फोल्डर में था ही नहीं! पैकिंग के दौरान किसी ने अंदर रख दिया था और अब वो लोग मुझे जाने से मना कर रहे थे। मेरे सारे साथी अंदर जा चुके थे। और बहार बहुत भीड़ थी। मैं अकेले भाग -दौड़ कर रही थी। मैंने उस दौरान बहुत लोगो से बात की, उन्हें समझाया की मैं क्यों जा रही हूँ फिर आधे घंटे बाद उन्होंने अंदर जाने दिया और मैं भावुक भी हो गयी थी क्योंकि मैंने ऐसे अकेले कभी नहीं किया था। मैं समय से अपने फ्लाइट में जा पाई।युगांडा, अफ्रीका में सीखने का सफर और चुनौतियांभारत से कई घंटे फ्लाइट में सफर करने के बाद हम सभी कम्पाला (यूगांडा) पहुंचे। यह 5 दिवसीय का कैंप था जंहा इस प्रोग्राम को लेकर सभी के साथ ओरियंटेशन होना था। इस युथ कम्पाला कैंप में लगभग 119 जगहों से युवा आये थे। सभी अपनी-अपनी संस्कृति, भाषा,रंग रूप को सम्मान देते थे। सबसे अच्छी बात तो यह थी की सब एक दूसरे को इज्जत दे रहे थे। हालांकि इस दौरान मेरे लिए लोगो के साथ बातचीत करना कुछ हद तक मुश्किल था। मैं हिंदी भाषा से ज्यादा सहज रही हूँ और वंहा किसी को हिंदी नहीं आती थी।लेकिन कई सारे युवा थे जिन्हे अपनी मातृभाषा आती थी पर इंग्लिश नहीं आती थी। इसलिए जब मैं किसी से संचार करने की कोशिश करती थी तो में मुस्कुरा कर प्रतिक्रिया देती थी।इस पुरे कैंप के दौरान हमारे साथ ट्रैनिंग में इस प्रोग्राम से सबंधित जानकरी दी गयी और टीम एक्टिविटी करवाई गयी। यह दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। हम सभी दुनिया भर से अलग-अलग कोने से आए थे। एक शाम सांस्कृतिक कार्यक्रम रखा गया था। जंहा सभी युवाओं को अपनी-अपनी संस्कृति से जुड़े कपड़े, नृत्य, भाषा, लोक-गीत दवारा प्रदर्शित करना था। मैंने भी लोकगीत गानो पर नृत्य किया। इसी कैंप में हम उन 5 चेंज ड्राइवर्स वॉलन्टीयर से भी मिले जो भारत प्रवाह संस्था आने वाले थे। हम सभी इस कैंप के बाद अब एक साथ केप टाउन, साउथ अफ्रीका के लिए निकल गए।वंहा पहुंचने के बाद केप टाउन में हमारा लगभग के एक हफ्ते से ज्यादा का ओरिएंटेशन हुआ। इसी दौरान हम सभी Activate! Change Drivers की टीम के साथ मिले। हमने अफ्रीका - भारत के संस्कृति को समझा, इस दौरान किस तरह की चीजों का सामना करना हैं, प्लानिंग, लक्ष्य इत्यादि पर बात की थी।इस दौरान हम एक बार कम्युनिटी विजिट और कुछ बाहरी ट्रेनिंग में ही जुड़ पाए क्योंकि कोरोना का इतना डर था। यह डर हम आसपास के माहौल मे देख पा रहे थे। आने वाले दिनों में हमारी ट्रेनिंग और एक्शन्स की सभी योजनायें भी रद्द हो गयी। हम अब घर में रहने लगे ऑफिस बंद हो गया था। अब भारत आने की तैयारी को लेकर बातचीत होने लगी और मार्च के मध्य में यह निर्णय लिया गया की अलगे 2 दिन में हम भारत आ जायेगे। मैं उस दौरान व्यक्तिगत चीजों से परेशान थी और मेरे साथ बहुत से हादसे भी हुए थे जैसे :- सामान खोना,चोट लगना,खुद पर संदेह इत्यादि जंहा कुछ जगहों मेरे साथियों ने मदद भी की थी और मैं आगे बढ़ पाई।भारत वापसीकोरोना के कारण विश्व में आपातकालीन स्थिति जैसे पैदा हो गयी थी। उसी प्रकार हमें भारत की खबर मिलती रहती थी की परिस्तिथि और बिगड़ ना जाये इसलिए हमारा अगले दो दिन में भारत वापसी तय हुआ।हम सभी ने अपने बैग पैक किये और एयरपोट के लिए निकल पड़े।हम सबकी कनेक्टिंग फ्लाइट थी पहली केपटाउन से इथोपिया और दूसरी फ्लाइट इथोपिया से भारत। हम 5 लोग इस सफर में जुड़े थे और हम सभी फ्लाइट में अलग-अलग सीट पर बैठे थे और मेरा सीट तो सबसे ही अलग था। यह फ्लाइट वक्त से लगभग 20 - 25 मिनट लेट चल रही थी। हमारी कनेक्टिंग फ्लाइट अगले 45 मिनट में था इसलिए फ्लाइट लैंड होते ही सब आगे बढ़ने लगे जब तक मैं नीचे आई एक बस पूरी सवारी लेकर चली गयी।मैं अपने साथियों को आसपास ढून्ढ रही थी लेकिन मुझे कोई भी नहीं दिखा इसलिए मैंने आगे बढ़ना ही तय किया दूसरी बस आई और मैं इथोपिया के एयरपोट के चेकिंग पर पहुंची। मैंने आसपास देखा तो लोग Covid से डरे हुए थे। एक दूसरे से दूरी बना रहे थे। यंहा पर चेकिंग करने के लिए शरीर से जूते, जुराब, जैकेट, घड़ियां सब निकलवा कर चेकिंग कर रहे थे और मुझे इस दौरान थोड़ी-थोड़ी घबराहट होने लगी क्योंकि समय बहुत ज्यादा हो रहा था। इसलिए सिक्योरिटी चेकिंग होते ही मैंने अपनी घड़ी बैग में डाली और जूतों को अपने हाथ में लेकर मैं बोर्डिंग के लिए भागी।जब मैं वंहा पहुंची, मैंने वही के एक व्यक्ति से पूछा फ्लाइट कहा हैं ? उसने जब कहा "its already gone" मैंने कहा प्लीज मज़ाक मत कीजिये। मैंने पूछा कब गई- उसने कहा की बस कुछ देर हुई हैं। मैंने कहा ऐसे कैसे हो सकता हैं ? हमारी पहली फ्लाइट लेट थी और चेकिंग में इतना समय गया तो कैसे हो सकता हैं? मैं 5 मिनट तक एक मूर्ति की तरह खड़ी थी और डरी और घबराई हुई थी। मैंने सबसे पहले खुद को शांत किया और उसके बाद उन्होंने कहा की कस्टमर केयर पर जाओ।वंहा पर सभी को सिर्फ अंग्रेजी ही आती थी। मैंने उन्हें बताया मैं अपने दोस्तों से बिछड़ गयी हूँ मुझे इंडिया जाना हैं मुझे नहीं पता मेरे साथियों को पता भी हैं या नहीं की मैं यंहा हूँ। उन्होंने कहा अब अगली दिन की टिकट होगी।मैं घबरा गयी, तब तक मैं इतने बड़े एयरपोट पर क्या करूंगी कहा जाउंगी? मैंने उनसे कहा भी मेरे पास इस देश की कोई करेंसी भी नहीं हैं तो कैसे होगा? और यह सारी बातचीत मैंने अंग्रेजी में की।उन्होंने मुझे अगले दिन की टिकट देकर काउंटर पर भेजा। मैंने उनसे बात की तो मेरा निवास स्थान, यात्रा और खाने का प्रबंध हो गया था। यह सब सुनकर राहत मिली और एक बस हमें होटल तक लेकर गयी। मैंने खाना खाया और मैं वही पर पूरी रात और अगली शाम तक रही। इसी बीच में एक और चुनौती आ गयी, मेरा चार्जर यंहा काम नहीं कर रहा था। फ़ोन ऑफ होने वाला था तो मैंने होटल से मदद मांगी और इस पुरे प्रक्रिया के बारे में अपने सभी साथियों को ग्रुप में सुचना दे दी ताकि जब तक वह भारत पहुंचे उन्हें सन्देश मिल जाये की मैं सुरक्षित हूँ।शाम को मैंने सबको धन्यवाद बोलते हुए चेकआउट किया और इस बार मैं एयरपोट 3-4 घंटे पहले जाने के लिए तैयार हो गयी। बस वाले और भी लोगो का इंतजार कर रहे थे लेकिन 20 मिनट बाद मैंने कहा आप कृपया चलो क्योंकि मुझे जल्दी जाना हैं। जब मैं एयरपोट पहुंची मुझे अपना यह निर्णय सही भी लगा। कोविड के कारण एक्स्ट्रा चेकिंग हो रही थी जिसमे एक घंटे लग ही गया।मुझे पता था की किस तरफ जाना हैं क्योंकि एक दिन पहले मैं यही थी। चेकिंग के कुछ देर बाद फ्लाइट की एंट्री शुरू हो गयी। जब मै फ्लाइट में बैठी तब मैंने सोचा आज अगर समय से नहीं बैठती तो पता नहीं क्या होता। जब मैंने भारत में लैंड किया तब मुझे बहुत ख़ुशी हुई और मैंने खुद को कहा "विनीता तूने कर दिखाया।"कुछ सालो पहले अपने घर के आसपास, मैं ट्रेवल करने के लिए अपनी किसी सहेली के साथ जाती थी। कही न कही FAT के कार्यकर्मो से जुड़कर ही मैं यह कर पाई हूँ। क्योंकि FAT ने युवा महिलाओं के आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए अन्य ट्रेनिंग में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया और उसका हिस्सा रहकर मार्गदर्शक किया हैं।Whenever I and my fellow participants got the opportunity to volunteer and do internships in FAT, we did it with great interest. Every person working and learning in this organisation has got a chance, whether it is to go for training or to build self-confidence. I also got a lot of opportunities but I was always confined inside India.With the Pravah-ACTIVATE Youth Exchange Program in 2019, came the opportunity to visit Uganda and South Africa at FAT and my name was suggested for it. This was the first time that I was going outside India to an unknown country. After I got selected, I had to convince my family members to let me go. They were concerned about the living conditions, food and travelling in such far land.There were a total of 5 participants from India in this youth exchange program. We all applied for the visa together. It was a very exciting process and I got to learn a lot about it. It was the end of year in December when there are a lot of holidays. The next day after the new year, we submitted all the documents and were waiting for our Visa. We also got the Yellow Fever Vaccine, which every citizen has to take before they enter Uganda.Till the night we were supposed to leave for Uganda, we didn't get any update and we all went back home disappointed from the Visa Office. We told our family members as well and our packing was also not complete. Shortly after reaching home, we got a call from Aarti (who was the coordinator from Pravah) to come collect our passports and visas. Hearing this, we ran from wherever we were and went to get the visa. It took a long time to travel and I did not have time for packing. So somehow I reached the airport but this roller coaster did not end for me.When it came time for immigration, my yellow fever vaccination card was not in my documents folder! Somebody had put it inside the luggage bag while packing and now the airport officials were refusing to let me go. All my friends had gone inside. And it was very crowded outside. I was running alone. I talked to many people during that time, explained to them why I am leaving, then after half an hour they let me in. I also got emotional because I had never done this alone. Finally, I boarded my flight on time.The Journey and Challenges of Learning in Uganda, AfricaAfter traveling for several hours in flight from India, we all reached Kampala (Uganda). It was a 5-day camp where orientation was to be held wi

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